Safed Pani Ki Jankari Aur Desi Ayurvedic Ilaj
सफेद पानी की जानकारी और देसी आयुर्वेदिक इलाज
श्वेत प्रदर(Leucorrhoea)-
श्वेत प्रदर को आयुर्वेद में कफज प्रदर कहते हैं। जब मिथ्या आहार-विहार, संयोग विरूद्ध भोजन, पेय सेवन करने, गद-पर-गद भोजन करने, अत्यधिक मैथुन, सुज़ाक, उपदंश, फिरंग आदि दुष्ट रोगों के जीवाणुओं के संक्रमण, कैन्सर, अर्बुद होने आदि से योनि से गाढ़ा और श्वेत कुछ पीले रंग का चिपचिपा एवं श्लेष्मिककला के टुकड़ों से युक्त स्राव आता है, तो इसे श्वेतप्रदर कहते हैं।
श्वेत प्रदर के कारण-
त्रुटिपूर्ण आहार-विहार, संयोग विरूद्ध आहार, पेय, औषधि, भोज्य पदार्थों के सेवन, सर्वदा मन में कामवासनात्मक भाव, अत्यधिक मैथुन, पहले खा चुके भोजन के पचे बिना ही तत्काल भोजन कर लेना, अजीर्ण, गर्भपात, योनि और गर्भाशय ग्रीवा की श्लेष्मिककला में खरोंच, छिल जाना, योनिशोथ, शोक करने, कोई गहरा चिंतन अथवा दुःख, दिन में अधिक सोना, कोई श्रम वाल काम नहीं करना और अधिक समय तक खाली बैठे रहना, मासिकधर्म अधिक आना, छोटी आयु में विवाह हो जाना, जनानाँगों में फफूँदी हो जाना, यौवनारम्भ से पहले रजोधर्म, विकृतियुक्त रजोनिवृत्ति, गर्भाशय के दोष आदि कारणों से श्वेत प्रदर रोग हो जाता है।
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सम्प्राप्ति-
उपर्युक्त अनेक कारणों से योनि, गर्भाशय ग्रीवा एवं गर्भाशय में कफ और वात प्रकुपित होकर अपने दोष की दुष्क्रिया से आभ्यन्तरिक श्लेष्मिककला को छिन्न-भिन्न कर देने से उनमें वण्र, दुष्ट घाव, व्रणशोथ, अर्बुद, कर्कटार्बुद, अर्श के अंकुर, सुज़ाक की पूय एवं संक्रमण, उपदंश, फिरंग के जीवाणु संक्रमण हो जाते हैं, जिससे श्लेष्मिककला टूट-टूटकर टुकड़ों, छिछड़ों के रूप में निकलने लगते हैं। इनके अन्दर की ग्रन्थियाँ उत्तेजित होकर, व्रण के पीप तरल आदि के साथ श्वेत, पीत(पीला), रक्त-नील, हरित ही नहीं, अनेक रंग-रूपों के स्राव योनि से आने लगते हैं। व्रणों के कारण पीड़ा और शोथ भी हो जाती है। साथ ही इन जनानाँगों के आसपास तथा संबंधित अंग-प्रत्यंगों जैसे- कमर, पेड़ू, वंक्षण आदि में दर्द होर सूजन हो जाती है।
प्रदर रोग के प्रकार-
प्रदर रोग दो प्रकार का होता है-(1.) श्वेत प्रदर, (2.) रक्त प्रदर।
पूर्व रूप- योनि से हल्का श्वेत रंग का स्राव, कभी पीला या लाल रंग का, कमर में दर्द, पेड़ू में भारीपन, आलस्य, थकावट आदि।
श्वेत प्रदर के लक्षण-
योनिमार्ग से श्वेत, पीत, रक्त, पूययुक्त, कभी-कभी श्लेष्मिककला के टुकड़ेयुक्त, चिपचिपा, कभी पारदर्शक, कभी दूधिया और कभी अनेक रंगों वाला स्राव आता रहता है। ये स्राव प्रवाही तथा योनि की भित्तियों को गीला तथा चिपचिपा करने वाला होता है। योनि में खुजलाहट, दाह तथा कभी-कभी शूल भी होती है। किसी-किसी रोगिणी की योनि से दुर्गन्ध आती है। किसी-किसी की दुर्गन्ध तो इतनी तीव्र होती है कि रोगिणी के समीप बैठा तक नहीं जा सकता है। श्वेत प्रदर से पीड़ित महिला को कटिशूल, शिरःशूल, अंगमर्द, पिण्डलियों में दर्द एवं ऐंठन, भ्रम, आँखों के आगे अंधेरा छा जाना, घबराहट, किसी-किसी को मूर्छा, व्याकुलता, रक्त की कमी, चिड़चिड़ापन, भूख की कमी, कब्ज़, अपच, अबुर्द या कर्कटार्बुद के गर्भाशय ग्रीवा, योनि में उत्पन्न होने तथा उससे श्वेत प्रदर आने की स्थिति में कर्कटार्बुद सदृश लक्षण, गर्भाशय में अर्श होने की स्थिति में गर्भाशय मुख से मस्से दिखते हैं।
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आयुर्वेदिक चिकित्सा-
एकल औषधि चिकित्सा-
1. आँवला का जौकूट चूर्ण आठ गुना जल में भिगो दें। आँवलों का यह पानी 24 घण्टे बाद छानकर बोतलों में डाल लें। 25 से 35 मि.ली. बराबर जल मिलाकर दिन में 3 बार पीने से समस्त प्रकार के श्वेत प्रदर रोगों में लाभ होता है।
2. लाजवन्ती के पौधे को धोकर स्वच्छ करें, इसका रस निकाल कर 30-30 मि.ली. सुबह-शाम एवं रात को रोगिणी को पिलायें।
3. उदुम्बर छाल के 25 ग्राम यवकूट चूर्ण को 1 लीटर जल में भिगो दें। फिर 15 मिनट तक उबाल कर इसे हल्के गर्म जल से सम्पूर्ण योनि से गर्भाशय मुख तक प्रतिदिन 15-20 दिन प्रक्षालन करने से लाभ होता है।
Safed Pani Ki Jankari Aur Desi Ayurvedic Ilaj
4. फिटकरी 2 ग्राम को हल्के गर्म जल 500 मि.ली. में घोल और छानकर इससे योनि से गर्भाशय मुख तक डूश(प्रक्षालन) करने से संक्रमणों से उत्पन्न श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
5. इमली के 4 बीजों को जल में 24 घण्टे तक भिगो दें। सुबह छिलका उतार कर व पीसकर दूध के साथ लेने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
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बहुल औषधि चिकित्सा-
1. ककड़ी के बीजों की मींगी 12.5 ग्राम तथा श्वेत कमल पुष्प की पंखुड़ियाँ 12.5 ग्राम। दोनों को सूक्ष्म पीसकर उसमें जीरा चूर्ण 2 ग्राम और मिश्री चूर्ण 6 ग्राम मिलाकर ऐसी 1-1 मात्रा सुबह-शाम देने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है।
2. कुकुडांडत्वक भस्म और त्रिवंग भस्म प्रत्येक 10 ग्राम तथा अश्वगंधा चूर्ण 50 ग्राम मिलाकर सुबह-शाम 1 से 3 ग्राम मधु के साथ लेने से प्रायः समस्त प्रकार के श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है।
3. ताम्र भस्म 1 ग्राम, अश्वगंध चूर्ण 25 ग्राम तथा त्रिफला चूर्ण 75 ग्राम सूक्ष्म घोंटकर आवश्यकता एवं सहन-सामथ्र्य अनुसार 2 से 4 ग्राम पर्याप्त मधु में मिलाकर दिन में 3 बार देने से अर्बुद(ट्यूमर), कर्कटार्बुद या विषैले व्रणों से उत्पन्न गर्भाशय ग्रीवा के श्वेत प्रदर में लाभ होता है। यदि ताम्र भस्म उत्तम नहीं होगा तो भ्रान्ति, मिचली और वमन हो सकती है। ऐसी अवस्था में उपर्युक्त चूर्ण में छोटी इलायची के उत्तम काले बीज का चूर्ण 250 मि.ग्रा. मिला लें तो कोई उपद्रव नहीं होगा। यह हर प्रकार के गर्भाशय ग्रीवा के कैन्सर, गर्भाशय एवं योनि के कैन्सर में लाभप्रद है।
4. तालमखाना, तिखुर, उत्तम काले तिल, अलसी और मिश्री प्रत्येक बराबर-बराबर कूट और कपड़छान कर लें। 1 से 3 ग्राम चूर्ण चावल के धोवन 30 मि.ली. के साथ सुबह-शाम दें। गूलर के फलों की सब्जी खिलाने से श्वेत प्रदर में लाभ होता है तथा शक्ति एवं ऊर्जा भी बढ़ती है।
5. उदुम्बर की छाल और फिटकरी भस्म प्रत्येक 12 ग्राम कूटकर कपड़छान कर लें। इस चूर्ण को स्वच्छ और परिशुद्ध मलमल के कपड़े के टुकड़े में पोटली बांधकर योनि में रखवायें तथा रोगिणी पूर्ण विश्राम करें। ऐसा करने से श्वेत प्रदर में आराम प्राप्त होता है।
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