Shwet Pradar Ke Karan Lakshan Aur Ayurvedic Ilaj
श्वेत प्रदर के कारण, लक्षण और आयुर्वेदिक इलाज
ल्यूकोरिया(Leucorrhoea) किसे कहते हैं?
महिलाओं की यौन-स्थली से बहने वाले चिपचिपे लेसनुमा गरिष्ठ(गाढ़ा) स्राव को ल्यूकोरिया कहते हैं। यह स्राव सफेद रंग का और दुर्गंध भरा होता है। किसी-किसी महिलाओं को पीले, नीले व हल्के लाल रंग में भी यह द्रव्य निकलता है। चूँकि ज्यादातर और सामान्यत: ये सफेद रंग में ही बहता है, इसलिए इसे श्वेत प्रदर भी कहते हैं। ल्यूकोरिया यूं तो एक सामान्य समस्या है, जोकि कभी-कभी स्त्रियों को हो जाता है। किन्तु अगर इसे हल्के में लिया जाये या फिर इस ओर से लापरवाही बरती जाये तो यह समस्या आगे चलकर गंभीर रूप भी ले सकती है। केवल भारत की महिलाओं में ही सफेद पानी की समस्या नहीं पायी जाती, बल्कि करीब-करीब सभी देशों में हर आयु वर्ग की स्त्रियों में यह समस्या देखने को मिल जाती है।
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क्यों होती है ल्यूकोरिया की समस्या?
किसी भी रोग से बचने के लिए जरूरी है उसके कारणों के बारे में जानकारी होना। अगर व्यक्ति को यह पहले से ज्ञात हो कि किस कमी से, क्या खाने से, कैसे रहने से, क्या पीने से तन को कौन सा रोग लग सकता है, तो वह धैर्य और समझदारी से काम लेते हुए है खुद को हर रोग से सुरक्षित रख सकता है। खुद को स्वस्थ रख सकता है। इसी प्रकार ल्यूकोरिया की समस्या भी किन कारणों से हो सकती है, यह भी जानना अति आवश्यक है।
आइये जानते हैं कारण..
यूं तो अधिकतर विवाहित स्त्रियां ही इस रोग की गिरफ्त में आती हैं, लेकिन कभी-कभी कुंवारी युवतियां भी इस समस्या से घिर जाती हैं। ल्यूकोरिया की समस्या में प्रमुख कारण होते हैं शरीर में पोषक तत्वों की कमी और महिलाओं के यौनांग के अंदरूनी हिस्से में ‘ट्रिकोमोन्स वेगिनेल्स‘ के नाम से संबोधित किये जाने वाले कीटाणु।
अन्य कारणों के बारे में बात की जाये तो महिलाओं द्वारा अपनी यौन स्थली को सही से साफ न रखना(मल-मूत्र त्याग व संभोग के पश्चात्), शरीर में खून का अभाव, संभोग में गलत तरीके अपनाना, बहुत ज्यादा व्रत रखना, शरीर की क्षमता से अधिक श्रम करना, मिर्च-मसाले, तला हुआ व तीखा भोजन अधिक करना, यौन व गर्भाशय के मुख पर छाले, लगातार गर्भ गिरना व गिराना, योनि में संक्रमण, रोग-प्रतिरोधक क्षमता में कमी, शुगर आदि कई कारण हो सकते हैं।
ये हैं ल्यूकोरिया कुछ आम लक्षण-
यहां श्वेत प्रदर के लक्षणों की बात की जाये तो इसके कुछ आम लक्षण हैं, जो प्रतीत होते है जैसे- शारीरिक कमजोरी महसूस होना, शरीर के अंगों(हाथ-पैर, कमर, पेट इत्यादि) में दर्द, पिंडलियां खींची-खींची महसूस होती हैं, ऐसा लगता है जैसे शरीर में किसी ने भारी वजन रख दिया हो यानी भारीपन महसून होना, सर घूमना, नजरों के आगे अंधेरा छाना, भूख कम लगना, मूत्र सही व वास्तविक रंग में न आना, मूत्र बार-बार लगना, पेट में सख्तपन महसूस होना, मन में मिचली महसूस होना, यौन स्थली में खारिश की शिकायत इत्यादि लक्षण देखने को मिल सकते हैं। पीरियडस से पूर्व अथवा बाद में यौन मार्ग से श्वेत चिपचिपा द्रव्य बहना इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है। श्वेत प्रदर की शिकायत में स्त्री को चेहरा भी कभी-कभी पीला पड़ जाता है। धीरे-धीरे हालत तो यह हो जाती है, एक जवान स्त्री भी इस रोग की चपेट में आकर बूढ़ी दिखने लगती है।
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श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) की आयुर्वेदिक चिकित्सा-
1. माजूफल का चूर्ण 1 से 2 ग्राम तक की मात्रा में ताजा पानी के साथ सुबह-शाम रोगी महिला को देने से श्वेत प्रदर बंद हो जाता है।
2. सफेद मूसल का पाउडर 3 ग्राम, आमला-पानक के साथ दें। सफेद पानी की समस्या में बहुत आराम प्रदान करता है।
3. नागकेशर का चूर्ण 3 ग्राम ताजा पानी के साथ देने से ल्यूकोरिया की समस्या समाप्त हो जाती है।
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4. अनार के पत्ते 20 ग्राम, काली मिर्च 5 नग, सोंफ 1 ग्राम, पानी के साथ पीसकर छानें और सुबह के समय रोगिणी को सेवन पिलायें। श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर तथा उनके उपसर्ग समाप्त हो जायेंगे।
5. मुक्ताशुक्ति भस्म 20 ग्राम, लौह भस्म 5 ग्राम, बंग भस्म, कृष्णाभ्रक भस्म और यशद भस्म 3-3 ग्राम, पुष्पानुग चूर्ण और सुपारी पाक 40-40 ग्राम लेकर सबको खरल में 3 घण्टे घोट कर साफ शीशियों में भर लें।
मात्रा- 5-6 ग्राम तक यह मिश्रण, अशोक छाल के क्वाथ से अथवा अशोकारिष्ट के साथ, सुबह के समय और शाम के समय सेवना कराना चाहिए।
इसके 3 सप्ताह प्रयोग करने से ही पर्याप्त लाभ दिखाई देने लगता है। किन्तु रोग-निवृत्ति के लिए 6-7 सप्ताह तक सेवन करायें। इससे सभी प्रकार के प्रदर, रंगीन व श्वेत तथ दुर्गन्धित स्राव भी काबू में आ जाते हैं।
6. अशोक की छाल 100 ग्राम, सोना गुरू और संगजराहत 20-20 ग्राम, प्रवाल भस्म और लौह भस्म 3-3 ग्राम तथा मिश्री 125 ग्राम लेकर, सबका अत्यंत सूक्ष्म चूर्ण करें और सुरक्षित रखें।
मात्रा- 2 या 3 मात्रा यह औषधि पानी के साथ सुबह-शाम सेवन करायें अथवा अजा-दुग्ध के साथ दें। इससे घोर श्वेत प्रदर या रक्त प्रदर नष्ट होता है। मासिक गड़बड़ी की स्थितियों में इसका व्यवहार हितकर है। अति रजःस्राव, दूषित रजःस्राव, रक्त मिश्रित स्राव अथवा रक्त दोष भी दूर हो जाते हैं। दुर्बल स्त्रियों को इससे शक्ति मिलती है।
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7. अशोक की छाल 50 ग्राम, वासा पुष्प 25 ग्राम, मुलहठी, मुनक्का, शतावर, नागरमोथा और बेलगिरी 10-10 ग्राम लेकर, 1 लीटर पानी के साथ क्वाथ करें तथा चैथाई शेष रहने पर उतार कर छान लें। इस क्वाथ में समान भाग शर्करा मिलाकर शर्बत की एक तार की चाशनी बना लें।
मात्रा- 3-4 चम्मच यह शर्बत, दिन में 3 बार पिलाना चाहिए। इससे श्वेत तथा रक्त दोनों प्रकार के प्रदर रोगों और उनके उपसर्गों में लाभ होता है।
8. अशोक की छाल का क्वाथ 240 मि.ली., वासा स्वरस 120 मि.ली. श्वेत शर्करा अथवा मिश्री 90 ग्राम, शकरकन्द का छाया-शुष्क चूर्ण और छोटी पीपल का चूर्ण 10-10 ग्राम, लौह भस्म 3 ग्राम।
क्वाथ और स्वरस को मिश्री के साथ मिलाकर मन्दाग्नि पर पकायें। उसी में शकरकन्द और पीपल का चूर्ण डालें। जब गाढ़ा हो जाये, तब उसमें लौह भस्म मिलायें और उतार कर, ठंडा होने पर उसमें 90 ग्राम शहद मिलाकर रखें।
मात्रा- 1 से 2 चम्मच तक यह अवलेह सुबह-शाम सेवन करायें। ऊपर से बकरी का दूध, थोड़ी मिश्री मिलाकर पिला दें। इससे रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, खाँसी, दुर्बलता, स्रावजनित क्षय, रक्तपित्त तथा ज्वर में भी लाभ होता है। स्वकल्पित तथा स्वानुभूत है।
9. बिना बुझा चूना 100 ग्राम की डली लेकर 20 लीटर पानी में डालें और 24 घंटे भीगने दें। फिर उसे छानकर, उसमें अशोक की छाल 50 ग्राम, वासा पंचांग, त्रिफला, नागरमोथा, सौंफ और गुलाब के फूल 10-10 ग्राम, जौकुट करके डालें और 24 घंटे रखा रहने दें। तदुपरान्त भवके द्वारा अर्क खींच लें।
मात्रा- 30-40 मि.ली. तक यह अर्क सुबह-शाम सेवन करायें। इससे श्वेत रक्त, नीला, पीला सब प्रकार के प्रदर में लाभ होता है। खाँसी, उदर-विकार, मलावरोध आदि उपसर्गों को दूर करने में भी उपयोगी है। रोगिणी चाहे तो इसमें 1 चम्मच शहद मिला सकती हैं। स्वकल्पित तथा स्वानुभूत है।
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