Shwet Pradar(Leucorrhea) Rog Ka Ayurvedic Upchar श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) रोग का आयुर्वेदिक उपचार

Shwet Pradar(Leucorrhea) Rog Ka Ayurvedic Upchar श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) रोग का आयुर्वेदिक उपचार

Shwet Pradar(Leucorrhea) Rog Ka Ayurvedic Upchar

श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) :

इस रोग में स्त्री-योनि में सफेद पीलाहटयुक्त तरल निकलता है। इससे योनि के ओष्ठ चिपक जाते हैं और कभी-कभी जांघों के ऊपर भागों में तरल लगकर जम जाया करता है। कमर में दर्द रहता है, पेडू़ में बोझ एवं दर्द होता है, मूत्र बार-बार आता है, काम-काज करने में मन नहीं लगता, स्त्री सुस्त व कमजोर हो जाती है। मासिक अति कष्ट व दर्द से आता है।

भारतीय स्त्रियां सौन्दर्य की दृष्टि से विश्व के सभी देशों की महिलाओं की तुलना में अद्वितीय होते हुए भी 80 प्रतिशत इस रोग से ग्रस्त होने के कारण अति शीघ्र अपना सौन्दर्य गंवा बैठती हैं। डाॅक्टर के पास आने वाली स्त्रियों में प्रत्येक 10 से 8 स्त्रियां श्वेत-प्रदर से ग्रस्त होती हैं।

महिलाओं के गर्भाशय व योनि मार्ग से रिसने वाले विभिन्न रंगों के चिपचिपे स्रावों के कारण उन्हें सूजन व खुजली होने लगती है। कभी-कभी यह स्राव अति ती्रव व दुर्गन्धित होता है।

योनि से जब केवल तरल आता है, तब उसे श्वेत प्रदर कहते हैं और जब साथ में रक्त आने लगता है, तो उसे रक्त प्रदर कहते हैं। जुकाम की भांति ही श्वेत प्रदर भी आता रहता है, जो रोगिणी को घेरे रहता है। बंद होकर फिर शुरू हो जाता है। ल्यूकोरिया नाक का नहीं, बल्कि योनि का जुकाम है। दोनों में कोई अंतर नहीं है। प्रजनन तंत्र की गंदगी को निकालने के लिए प्रकृति नाक को नहीं, उस अंग को चुनती है तथा इस रोग का उपचार भी वही है जो जुकाम का है।

जिस प्रकार शारीरिक परिश्रम से रोजी कमाने वाले को जुकाम कम से कम होता है, उसी तरह रोटी के लिए शारीरिक परिश्रम करने वाली स्त्रियों को यह रोग कम होता है। इसलिए यदि यह कहा जाये कि ल्यूकोरिया कमजोरी का परिणाम है, तो यह बात गलत नहीं होगी।

Leukorrhea Treatment in Hindi

शहर में रहने वाली प्रत्येक ऐसी स्त्रियां जिन्हें बिना परिश्रम किये ही खाना मिल जाता है, इस रोग से ग्रस्त होती हैं। यह रोग उन देहाती अथवा शहरी स्त्रियों को भी हो जाता है, जो गंदी रहती हैं तथा योनि को भी गंदा रखती हैं। इसलिए इस रोग से बचने और उसे भगाने की पहली विधि परिश्रम एवं योनि की अच्छे से साफ-सफाई करना है।

साधारणतः मादा जानवर को यह रोग नहीं होता, लेकिन जब उसे घास कम और अनाज अधिक खाने को दिया जाता है, तब उसे भी यह रोग हो जाता है। परन्तु जब उसके चारे में दाना निकाल कर केवल उसे घास ही खाने को दी जाती है, तब वह अपने आप इस रोग से छुटकारा पा लेता है।

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यह आश्चर्यजनक नहीं है। अनाज से ही यह तरल बनता है और हरी घास उसे दूर करती है। ठीक यही परिणाम आदमी को भोजन में परिवर्तन करके भी प्राप्त किया जा सकता है। भोजन में अनाज, घी और दूध की मात्रा कम करके तथा हरी तरकारियों और मौसम के ताजा फलों की मात्रा बढ़ा कर इस रोग को समाप्त करने में सहायता मिलती है। इस रोग में मसाले भी ठीक नहीं हैं। यह झिल्ली में जलन पैदा करते हैं और रोग के जमने में सहायक होते हैं।

कुछ चिकित्सक बाहरी साधनों से प्रदर के स्राव को रोक देते हैं। यह करना ऐसा ही हानिकारक होता है, जैसे गंदे गटर को जबरदस्ती रोक दिया जाये, तो भीतर गंदगी भरी रह जायेगी तथा उसकी बदबू किसी न किसी तरह बाहर भी फैलेगी।
इसी प्रकार यदि प्रदर को जबरदस्ती बाहरी चिकित्सा द्वारा बंद कर दिया जायेगा, तो उसका प्रतिफल यह होगा कि डिम्बग्रन्थियों में सूजन, यकृत के रोग, पेट तथा फेफड़ों के एवं मानसिक रोग हो जाएंगे।
प्रदर तो रोगिणी के आन्तरिक मल को बाहर निकालने का मात्र एक उपाय है। ‘प्रदर’ यानी सफेद पानी की समस्या, रोग नहीं है। यह तो प्रकृति द्वारा मल, प्रदर के रूप में बाहर निकालने को बाधित करने का साधन मात्र है। अतः रोगिणी का उपचार लक्षणानुसार करने से इसे दूर किया जा सकता है।

उपरोक्त कारणों के साथ-साथ और भी बहुत से कारण इस रोग के होने के हो सकते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

Leucorrhea Treatment in Hindi

1. अनियमित मासिक धर्म, सफाई न रखना, खून की कमी, शारीरिक कमजोरी, गुदा मार्ग से पतले सूत कृत्रिमों का बाहर निकल कर योनि में प्रवेश होने से, हस्तमैथुन, पुरूष मैथुन की अत्यधिकता, जरायु का अपने स्थान से हट जाना, छोटी आयु में गर्भ ठहर जाना, योनि शोथ, गर्भाशय शोथ आदि।

2. घर में बैठे रहना, काम-काज न करना, गरिष्ठ भोजन करना, गंडमाला, चेचक आदि के उद्भेद के रोग से, गर्भाशय की गर्दन में घाव से मांस का खा जाना, प्रेमपूण गंदे, अश्लील, कामुक उपन्यास, पत्रिकाएं पढ़ना, कामुकतापूर्ण चलचित्रों का देखना, प्रेममय वातावरण में रहना, प्रदर का बंद हो जाना, बचपन में धूल आदि में खेलना।

3. विशेष प्रकार के कृमि, ठंड लग जाना या पानी में भीगकर काम करना, बवासीर का रक्त बंद हो जाना, योनि में चैकपैसरी(छल्ला या लूप) आदि लगवाना, योनि में किसी प्रकार का चर्म रोग या खुजली होने पर उत्तेजनावश कामुकता, प्रमेह या सुजाकग्रस्त पुरूष से यौन समागम।

4. कुंवारी वयस्त लड़कियों में स्वाथ्य की खराबी, चिंता, क्रोध, थकान, छोटी आयु की लड़कियों द्वारा हस्तमैथुन, अप्राकृतिक मैथुन करना व कराना, बड़ी स्त्रियों का अत्यधिक संभोग करना, लसिका या लसदार गांठों का रोग, उपदंश व सुजाक रोग होना, कभी कब्ज़ कभी क्षय या कण्डमाला या जोड़ों की शोथ और दर्द इत्यादि।

5. योनि से होने वाला स्राव कुछ पतला, सफेद तथा मक्खन जैसा होता है। जरायु से होने वाला स्राव अण्डे की लाली जैसा और थक्केदार होता है। इस प्रकार का पार्थक्य परख कर इस रोग का निर्णय करना चाहिए।

श्वेत प्रदर के मुख्य लक्षण :

1. निचले पेट में भारीपन।
2. चलने व उठने पर जांघों में भारीपन महसूस होना व दर्द होना।
3. अवसन्नता।
4. अरूचि।
5. अजीर्णता।
6. कोष्ठबद्धता।
7. सिरदर्द
8. चक्कर और रोग के पुराना होने पर क्रमशः कलेजे के चारों ओर भार तथा वेदना, हृतपिण्ड की विकृति में श्वास कष्ट, मूच्र्छाभाव आदि लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं।

घरेलू व आयुर्वेदिक उपचार :

Shwet Pradar(Leucorrhea) Rog Ka Ayurvedic Upchar

1. मोचरस आवश्यकता के अनुसार कूट-छान कर चूर्ण बना लें। 2 ग्राम सुबह-शाम 50 ग्राम अर्क गौवज़वाँ तथा अर्क बादियान प्रत्येक 50 मि.ली. या सादा पानी में लें।

2. मरजान की जड़(मूँग की जड़) आवश्कता के अनुसार लेकर कोयलों की दहकती आग पर रख दें। जब सफेद हो जाये तो खरल करे सुरक्षित रखें। मात्रा एक माशा से दो माशा तक सुबह के समय ताजा पानी के साथ प्रयोग करना इस रोग में लाभप्रद है। निरंतर दो सप्ताह तक प्रयोग करें। यह हृदय व मस्तिष्क शक्तिवर्धक भी है।

3. सरवाली के बीज 150 ग्राम बहुत बारीक पीसकर शक्कर सफेद, समान मात्रा में मिलाकर 6-6 ग्राम सुबह व शाम गाय के दूध या पानी के साथ लें। इस रोग की विशेष और अनुपम औषधि है यह।

4. सरस के बीज महीन पीसकर समान मात्रा में मिश्री या बुरा मिलाकर चूर्ण बना लें। सुबह-शाम 3-3 ग्राम दूध के साथ लेने से ल्यूकोरिया की समस्या में बहुत फायदा पहुंचता है।

5. अक़ाकिया असली बारीक पीस लें। 2 ग्राम खायें तथा योनि में भी रखें।

6. आंवले के बीजों की गिरी को पीसकर ठण्डाई की भांति छानकर शक्कर और शहद मिलाकर पिलाते रहने से 4-6 दिन में प्रदर रोग जिसमें सफेद पतला पानी जैसा स्राव आता है, ठीक हो जाता है।

7. बांसा(अडूसा) की जड़ की छाल लेकर उसका रस निकाल लें। इसे दिन में तीन बार शहद के साथ प्रयोग करने से यह रोग निश्चित रूप से ठीक हो जाता है।

8. अण्डे के छिल्के की भस्म 2 मि.ग्रा. या मोती भस्म दो चावल, सुपारी पाक 6 ग्राम के साथ प्रतिदिन खाना लाभप्रद है। अकेली सुपारी पाक भी इस रोग की सफल औषधि है।

9. पीपल के सूखे गोंद को आटे में मिलाकर गाय के दूध में हलवा बनाकर खाने से प्रदर रोग में लाभ होता है। पीपल का दूध 10 बूंद बताशे में डालकर लेने से या बंशलोचन चूर्ण में मिलाकर देने से लाभ होता है।

10. दारू हल्दी का चूर्ण 6 ग्राम शहद में मिलाकर खायें और ऊपर से गाय के दही की छांछ पीने से काफी फायदा पहुंचता है।

11. भिण्डी की सूखी जड़ का चूर्ण 5 ग्राम मिश्री मिले दूध के साथ पीने से लाभ मिलता है।

12. लोध्र-पठानी का चूर्ण 6 ग्राम शहद के साथ चाटने और ऊपर से दूध पीने से इस रोग में लाभ मिलता है।

13. 1-2 पके हुए केले 6-6 ग्राम घी के साथ सुबह-शाम रोजाना खाने से प्रदर रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

14. कड़वी नीम की छाल के रस में सफेद जीरा डाल कर 7 दिन तक पीने से प्रदर रोग दूर हो जाता है।

15. आंवले का बारीक चूर्ण 3 ग्राम व शहद 6 ग्राम मिलाकर नियमित एक मास तक सेवन करने से समस्या दूर हो जाती है।

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