Striyon Me Safed Pani Ki Samasya Ka Desi Ilaj
श्वेत प्रदर का परिचय(Leucorrhoea)-
प्रदर का शब्दिक अर्थ स्राव होता है। किन्तु श्वेत प्रदर का प्रचलित अर्थ गर्भाशय से योनि मार्ग द्वारा स्रावित होने वाले स्रावों से है, जिनका रंग श्वेत(सफेद) होता है। यह स्वयं में स्वतंत्र रूप से कोई रोग नहीं है, बल्कि लक्षण मात्र है जोकि केवल महिलाओं में ही होता है। इसमें कोई अन्य रोग अप्रत्यक्ष रूप से विद्यमान होता है। पर इसके लक्षण के रूप में यही स्राव प्रत्यक्ष रूपेण अष्टिगत होता है। इसी से पीड़ित होकर रोगी महिला, चिकित्सक के पास पहुंचती है। तब इसी लक्षण स्वरूप का विभिन्न प्रकार से निरीक्षण तथा परीक्षण करके रोग की तह तक पहुंचकर निदान और चिकित्सा करने में चिकित्सक समर्थ हो पाते हैं। इसलिए इस लक्षण की गणना स्वतंत्र रूप से होने वाले रोगों की श्रेणी में ही की जाती है। स्त्रियों को श्वेत प्रदर(ल्यूकोरिया) होना एक आम बात हो गई है।
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जैसे पुरूष 70 प्रकार के प्रमेह रोग में से किसी न किसी प्रकार के प्रदर से ग्रस्त पाया जाता है, वैसे ही आमतौर पर स्त्रियां किसी न किसी प्रकार के प्रदर से ग्रस्त पायी जाती है। उचित आहार-विहार का पालन करने वाले स्त्री-पुरूष इन रोगों से बचे रहते हैं। मासिक रजःस्राव के दिनों के अलावा किसी प्रकार का स्राव योनि मार्ग में होना नहीं चाहिए। यदि होता है तो इसे प्रदर रोग होना कहते हैं। स्राव का रंग सफेद होने से इसे ‘श्वेत प्रदर’ रोग कहते हैं। यह स्राव सफेद, भूरा, हल्का पीला या कालापन लिये हुए, चिपचिपा, पतला या गाढ़ा बदबूदार और लिसलिसा होता है। यह 2-3 दिन में बंद हो सकता है या ज्यादा दिनों तक होता है। लगभग 90-95 प्रतिशत स्त्रियां इस रोग की शिकायत लेकर चिकित्सक के समक्ष आती हैं।
श्वेत प्रदर के विशेष कारण-
1. मासिक धर्म के प्रारिम्भक प्रथम तीन दिनों में स्नान करने से।
2. अधिक संभोग करने से।
3. अधिक चिंता करने से।
4. कामोत्तेजक चित्र देखने से एवं अश्लील गाने सुनने व एवं गंदी फिल्में एवं गंदे चित्र देखने से।
5. अत्यधिक विषय विकार से।
6. परिश्रम न करने से।
7. तेल खटाई युक्त आहार अधिक लेने से।
8. लाल मिर्च, प्याज, अण्डा, मांस, चाय आदि अधिक प्रयोग करने से।
9. गुप्तांगों की ठीक प्रकार से साफ-सफाई न करने से।
10. योनि के अंदर सूजन आदि पैदा करने वाले सूक्ष्म कृमियों के चले जाने के कारण होने वाले इंफेक्शन से योनि में श्वेत लेसदार दुर्गन्धित पानी-सा बहना है। स्त्रियां इसे सामान्य रोग मानकर चुपचाप रहती हैं एवं अपने रोग को छुपाये रहती हैं, जिससे रोग अपना पूरा प्रभाव जमा लेता है।
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श्वेत प्रदर की सामान्य चिकित्सा-
1. सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
2. हल्के गर्म पानी से योनि को धोना चाहिए।
3. पिचकारी से योनि को धोना और भी लाभदायक होता है।
4. गर्भावस्था में पिचकारी का प्रयोग जोखिम पूर्ण हो सकता है।
5. ऐसी स्थिति में सहवास बहुत कम करें।
6. योनि को त्रिफला अथवा सोडा(खाने वाला) के मिले पानी से छींटे मारने चाहिए। आधा लिटर पानी में 12 ग्राम त्रिफला भिगोकर रखना या 1 लीटर पानी में 6 ग्राम Soda bicarb डालना। इनकी पिचकारी डूश करना उत्तम है।
Striyon Me Safed Pani Ki Samasya Ka Desi Ilaj
श्वेत प्रदर की देसी प्राकृतिक चिकित्सा-
1. गूलर 6 ग्राम या रसौंत आधा ग्राम सुबह-शाम पानी से फांक ले। मक्खन मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
2. 25 ग्राम आंवला रात को एक चैथाई लीटर पानी में भिगो दें। सवेरे उनका पानी निथार लें। उस पानी में 12-12 ग्राम शहद या खांड मिलाकर पीयें।
3. कीकर का गोंद, कहरवा, पीली कौड़ी, ढाक का गोंद अलग-अलग कूट-पीसकर कपड़छान कर समभाग मिला लें। 2-2 ग्राम सुबह-शाम ठंडे पानी से खायें। गर्म, खट्टे और गरिष्ठ पदार्थों से दूर रहें।
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4. जो सफेद पानी पेशाब के साथ और बहुत पीड़ा से निकलता है, इसके लिए यह उपाय करें- ब्रांडी 12 ग्राम पानी 125 ग्राम मिलाकर उसके साथ मोटी इलायची 3 ग्राम और तेजपत्ता 2 ग्राम रात को एक ही बार प्रयोग करें।
5. श्वेत प्रदर की रोगिणी को सर्वप्रथम अपने आहार में सुधार की ओर ध्यान देना चाहिए। आलू, अरबी, गोभी, मांस, मछली, चटपटी चीजें आदि को छोड़ देना चाहिए।
6. श्वेत प्रदर से ग्रस्त महिला को प्रतिदिन नमक, जीरा मिलाकर छांछ अवश्य पीना चाहिए। चावल का धोबन बनाकर इसमें दूब की साफ की हुई जड़ घोंट पीसकर छान लें और पी लें। इससे प्रदर रोग शर्तिया ठीक हो जाता है।
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